अतिरिक्त >> धरती का बेटा धरती का बेटायुगेश शर्मा
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प्रस्तुत है पुस्तक धरती का बेटा ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
धरती का बेटा
मंगल पटेल की चौपाल में आज बड़ी भीड़ थी। सभी परेशान थे। पिछली रात पटेल
की तबीयत ज्यादा खराब हो गयी थी। पटेल ने सरपंच गोविन्द जी को अपने पास
बुलाया और कहा—‘‘अब मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है।
इसलिए मैं यह शरीर छोड़ने से पहले एक काम करना चाहता हूं। वह काम
है—अपनी सम्पत्ति का दोनों बेटों के बीच बंटवारा। आज तो मेरे दोनों
बेटों में मेल-मिलाप है। वे कंधे से कंधा मिला के खेती करते हैं लेकिन कल
किसने देखा है, सरपंच जी। मन में मैल आते देर ही कितनी लगती
है।’’
सरपंच गोविन्द जी बोले—‘‘मंगल काका, आप की हालत को देखते हुए तो मुझे बंटवारा जरूरी नहीं लगता। लेकिन अगर आपकी आखिरी इच्छा है, तो मैं इसे बुरा भी नहीं मानता।’’
मंगल पटेल ने मौजूद पंचों के सामने अपनी सारी संपत्ति का बंटवारा कर दिया। अस्सी बीघा जमीन, चार हजार रुपये नकद, पचास मवेशियों, दो कुओं और सोने-चाँदी के जेवरों के बंटवारे को पटेल के दोनों बेटों ने खुशी-खुशी मान लिया।
मंगल पटेल के बड़े बेटे गोपाल ने हाथ जोड़कर पंचों से कहा—‘‘पंचों, संपत्ति के बंटवारे से हम दोनों भाइयों के दिल और दिमाग में किसी प्रकार का फर्क आने वाला नहीं है. मैं चाहता हूं, हम दोनों भाई अपनी-अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए अलग-अलग खेती करें। बुजुर्गों का भी कहना है—अपनी ताकत से अनजान किसान ठगा जाता है।’’
पटेल का छोटा बेटा रतन बोला, ‘मैं भैया की भावना को समझ रहा हूँ। जैसे उन्होंने चाहा है—वैसा ही मैं भी करना चाहता हूं। इससे मेरी उस पढ़ाई का सही उपयोग भी हो सकेगा।—जो मैंने कृषि महाविद्यालय में प्राप्त की है। इस तरह डिग्री से खेती की मिट्टी का सीधा रिश्ता भी जुड़ेगा।’’
पंच रामा जी ने कहा—‘‘आप दोनों भाई अपने अपने हिस्से की जमीन पर खुद खेती करना चाहते हैं—यह तो वाकई खुशी की बात है। हर किसान को आत्म निर्भर बनना ही चाहिए। खेती तो आप सेती है। लेकिन हम यह जरूर चाहते हैं बेटा कि तुम दोनों भाइयों के द्वारा कोई ऐसा काम न हो, जिससे तुम्हारे खानदान की शान को बट्टा लगे। तुम्हारा खान-दान इस इलाके में आदर्श माना जाता है। मेरी नेक सलाह तुम भाइयों को यही है कि ठाकुर कमलसिंह से सावधान रहना। वह तुम्हारे खानदान को बदनाम करने पर तुला हुआ है।’’
सरपंच गोविन्द जी बोले—‘‘मंगल काका, आप की हालत को देखते हुए तो मुझे बंटवारा जरूरी नहीं लगता। लेकिन अगर आपकी आखिरी इच्छा है, तो मैं इसे बुरा भी नहीं मानता।’’
मंगल पटेल ने मौजूद पंचों के सामने अपनी सारी संपत्ति का बंटवारा कर दिया। अस्सी बीघा जमीन, चार हजार रुपये नकद, पचास मवेशियों, दो कुओं और सोने-चाँदी के जेवरों के बंटवारे को पटेल के दोनों बेटों ने खुशी-खुशी मान लिया।
मंगल पटेल के बड़े बेटे गोपाल ने हाथ जोड़कर पंचों से कहा—‘‘पंचों, संपत्ति के बंटवारे से हम दोनों भाइयों के दिल और दिमाग में किसी प्रकार का फर्क आने वाला नहीं है. मैं चाहता हूं, हम दोनों भाई अपनी-अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए अलग-अलग खेती करें। बुजुर्गों का भी कहना है—अपनी ताकत से अनजान किसान ठगा जाता है।’’
पटेल का छोटा बेटा रतन बोला, ‘मैं भैया की भावना को समझ रहा हूँ। जैसे उन्होंने चाहा है—वैसा ही मैं भी करना चाहता हूं। इससे मेरी उस पढ़ाई का सही उपयोग भी हो सकेगा।—जो मैंने कृषि महाविद्यालय में प्राप्त की है। इस तरह डिग्री से खेती की मिट्टी का सीधा रिश्ता भी जुड़ेगा।’’
पंच रामा जी ने कहा—‘‘आप दोनों भाई अपने अपने हिस्से की जमीन पर खुद खेती करना चाहते हैं—यह तो वाकई खुशी की बात है। हर किसान को आत्म निर्भर बनना ही चाहिए। खेती तो आप सेती है। लेकिन हम यह जरूर चाहते हैं बेटा कि तुम दोनों भाइयों के द्वारा कोई ऐसा काम न हो, जिससे तुम्हारे खानदान की शान को बट्टा लगे। तुम्हारा खान-दान इस इलाके में आदर्श माना जाता है। मेरी नेक सलाह तुम भाइयों को यही है कि ठाकुर कमलसिंह से सावधान रहना। वह तुम्हारे खानदान को बदनाम करने पर तुला हुआ है।’’
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